भारतीय संस्कृति वीरता और शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज में वीरता का
भाव प्रकट हो इसलिए विजयादशमी का विशेष महत्व है। विजयादशमी अर्थात्
विजयपर्व, आसुरी शक्ति और सभ्यता पर दैवी संस्कृति की विजय का दिन। भारत के
इतिहास में इसे रावण पर राम की विजय के पर्व के रूप में भी मान्यता है। भारत
का जन-जन आश्विन शुक्ल दशमी अर्थात् रावण पर राम की विजय को ही विजयपर्व मानता
है।वह शायद इसलिए कि, अन्य विजय सत्ता के युद्ध हैं। इन का लक्ष्य एक को हरा
कर अन्य सत्ता को प्रतिस्थापित करना है। इन सब में प्रतिशोध का असात्विक भाव
तो है ही, सत्ता का राजसिक अहंकार भी है जबकि राम की विजय वानर, ऋक्ष और पैदल
चलने वाले मनुष्य की सत्य और नैतिकता के लिए कृत संघर्ष की विजय गाथा है। पैदल
राम, वनवासी राम, विरथ राम, त्रिलोक विजयी रावण की उन्मत्त, उद्दाम, अत्याचारी
और लोलुप राजसत्ता को अत्यंत साधारण जीवों के बल पर चुनौती देते हैं। सादगी,
शुचिता, मर्यादा और नैतिकता के बल पर आसुरी यांत्रिक सभ्यता पर विजय अर्जित
करते हैं। यह राजा की नहीं राम की विजय है, संस्कार की विजय है, इसलिए
वास्तविक विजय है और यह पर्व सच्चे अर्थों में भारत के जन- जन का विजयपर्व है।
यह अधिनायकवाद पर जनसत्ता की विजय का महान पर्व है क्योंकि चक्रवर्ती राज्य
को त्याग कर वल्कल वेश में भी प्रसन्नवदन रहने वाले राजपुत्र, किन्तु अयोध्या
से लेकर रामेश्वरम तक लोक जीवन के बीच सामान्य जन की भांति विचरण करने वाले,
शबरी के जूठे बेर खाने वाले और अहिल्या का उद्धार करने वाले श्रीराम ने रावण
की लंका जीती, किन्तु पुष्प की भांति अर्पित कर दी उस विभीषण को जिसने तानाशाह
और धर्मद्रोही भाई का विरोध कर धर्ममय जन सत्ता का ध्वज उठाया था।
कुछ लोग विजयादशमी को आश्विन नवरात्रि से जोड़कर भगवती दुर्गा के द्वारा
महिषासुर जैसे राक्षसों के वध के द्वारा दैवी संस्कृति की विजय के रूप में
देखते हैं। देवी दुर्गा ने महिषासुर से नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन
उसका वध किया जो बुराई पर अच्छाई के विजय का प्रतीक है। विजयादशमी के दिन कुछ
जगहों पर शमी के वृक्ष की पूजा की जाती है। यही वह दिन है जब पांडवों का
अज्ञातवास पूरा हुआ था और अर्जुन ने शमी वृक्ष की कोटर से गांडीव सहित अपने
दिव्यास्त्र निकालकर कौरव सेना का सामना किया था। विराट पुत्र उत्तर के
सहयोगी की भूमिका में रहते हुए भीष्म सहित समस्त कौरव सेना को पराजित किया
था। यह भी मान्यता है कि नौ दिन तक चले कलिंग युद्ध के नरसंहार से व्यथित
चंड अशोक ने इसी दिन धम्म दीक्षा ली थी और चंड अशोक से 'देवानाम्प्रिय' अशोक
बन गया।
भारत के अधुनातन इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो विजयादशमी अनेक सुखद संयोगों को
अपने में समेटी हुई तिथि है। 24 अक्टूबर 1909 को विजयादशमी के दिन इंगलैंड में
पहली बार सावरकर और महात्मा गांधी संपर्क में आए। इसी दिन विनायकराव सावरकर के
बड़े भाई नारायणराव सावरकर का गांधी जी से संवाद हुआ था। विजयादशमी के दिन
इंडिया हाउस में एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। कार्यक्रम में शामिल होने के
लिए टिकट रखी गई थी और टिकट की कीमत थी चार शिलिंग। महात्मा गांधी ने इस
कार्यक्रम की अध्यक्षता की थी। स्वयं महात्मा गांधी के शब्दों में 'इस
कार्यक्रम में नारायणराव सावरकर ने रामायण की महत्ता पर बहुत ही जोशीला भाषण
दिया था।' इस भाषण में भारत में क्रांतिकारी आंदोलन को समर्थन और ब्रिटिश
सत्ता से लड़ने के लिए आह्वान भी था। कहा तो यह भी जाता है कि नारायणराव
सावरकर के जोशीले भाषण का प्रत्युत्तर गांधी जी ने उस समय अध्यक्ष के रूप में
नहीं दिया था। बाद में 1909 में ही लंदन से केपटाउन (दक्षिण अफ्रीका) लौटते
समय जहाज में 21 दिनों में चरमपंथी को पूर्वपक्ष बनाकार लिखी गई पुस्तक 'हिंद
स्वराज' गांधी जी का सावरकर बंधुओं को प्रत्युत्तर है।
यही वह तिथि है जब 1925 में विजयादशमी यानी दशहरा के दिन राष्ट्रीय स्वयं
सेवक संघ की स्थापना हुई थी। संघ अपने स्थापना काल से ही राष्ट्र के प्रत्येक
नागरिक के शारीरिक, सामाजिक एवं बौद्धिक विकास पर ही ध्यान दे रहा है जिससे
लोग संस्कारवान व अनुशासित बनें और भारत वर्ष पुनः विश्वगुरु के सिंहासन पर
आसीन हो। बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने सन् 1956 में विजयदशमी के दिन ही
नागपुर में अपने लाखों अनुयायियों के साथ धम्म दीक्षा ली थी। उन्होंने
विजयदशमी पर मैत्री, करूणा, मुदिता और उपेक्षा भाव का पल्लवन करते हुए
अस्तेय, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, सत्य और मादक द्रव्यों के त्याग के पंचशील का
संकल्प स्वीकार करते हुए नैतिकता, स्वतंत्रता और बंधुता पर आधारित समतामूलक
समाज का उद्घोष किया था।
दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है। भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत
में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग की
कोई सीमा नहीं रहती। इस प्रसन्नता के अवसर पर वह भगवान की कृपा को मानता है और
उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है। महाराष्ट्र में इस अवसर पर
सिलंगण के नाम से सामाजिक महोत्सव मनाया जाता है।इसमें शाम के समय सभी गांव
वाले सुंदर-सुंदर नये वस्त्रों से सुसज्जित होकर गांव की सीमा पार कर शमी
वृक्ष के स्वर्ण रूपी पत्तों को लेकर आपे गांव में वापस आते हैं। फिर उन
स्वर्ण रूपी पत्तों का परस्पर आदान-प्रदान किया जाता है। दशहरा का पर्व दस
प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और
चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। भारतीय इतिहास में विजयादशमी
एक ऐसा पर्व है जो असलियत में हमारी राष्ट्रीय अस्मिता और संस्कृति का प्रतीक
बन चुका है। रावण दहन कर हम सत्य के प्रति श्रद्धा व्यक्त कर स्वयं को
गौरवान्वित अनुभव करते हैं। विजय का हिंदू अर्थ है स्वधर्म और स्वदेश की
रक्षा, न कि युद्ध कर दूसरों की भूमि, धन और स्वत्व का अपहरण। यही निहितार्थ
है विजयपर्व विजयादशमी का। ऐसी विजय में किसी का पराभव नहीं होता, राक्षसों का
भी पराभव नहीं हुआ, केवल रावण के अहंकार का संहार हुआ। राक्षसों की सभ्यता
नष्ट नहीं हुई, अपितु उसको दैवी संस्कृति का सहकार मिला। विजय का सभ्यतागत
अर्थ है सर्वोदय के भाव से मानव एवं सभ्यता के रिपुओं का दमन। विजय यात्रा का
तात्पर्य है इंद्रियों की लोलुप वृत्ति का दमन कर चिन्मयता का विस्तार और
विजयादशमी का अर्थ है काम, क्रोध आदि दश शत्रुओं पर विजय का अनुष्ठान। यही
विजय वास्तविक विजय है। जड़ता से चिन्मयता की ओर बढ़ने से मानव निर्मित सीमा
का उल्लंघन है।